Thursday, February 26, 2009

संकल्प-शक्ति विकसित कीजिए

कई लोग मुँह-सबेरे निराशा भरे स्वर में यह कहते सुने जाते हैं कि क्या करें साहब! समय ही खराब चल रहा है। भाग्य साथ नहीं दे रहा है। ये वही लोग हैं, जो निरंतर वेदना से पीड़ित रहते हैं और नहीं जानते कि वे इस रोग का इलाज कैसे करें।
'समय खराब चल रहा है, भाग्य साथ नहीं दे रहा है, सितारे सीध पर नहीं हैं।' ये और इस तरह के सारे वाक्य उन समस्त लोगों का तकिया कलाम बन जाते हैं, जो अपने मन पर निराशाओं का बोझ लादे रखते हैं और उनमें परिस्थितियों से जूझने की तनिक भी संकल्प-शक्ति नहीं होती है।
समय की दो विशेषताएँ हैं। आधुनिक विज्ञान इसको मानता है या नहीं मानता, किंतु प्राचीन युग के विचारक ऐसा ही मानते थे। वे कहते थे कि समय के दो गुण हैं- पहला यह कि वह निरंतर गतिशील रहता है, वह कभी रुकता नहीं है। दूसरा यह कि उसका प्रभाव सबके लिए एक जैसा नहीं होता है। एक के लिए उसका प्रभाव अनुकूल है तो दूसरे के लिए प्रतिकूल है। एक के लिए अच्छा है तो दूसरे के लिए अच्छा नहीं है।
उदाहरण के लिए दो सौ परीक्षार्थी किसी परीक्षा में सम्मिलित होते हैं। उनमें से एक सौ नब्बे विद्यार्थी उत्तीर्ण हो जाते हैं। दस उत्तीर्ण नहीं होते, फेल हो जाते हैं। तो समय की उक्त परिभाषा के अनुसार इन दस परीक्षार्थियों के लिए समय अनुकूल नहीं है। उनके लिए समय खराब है, शेष के लिए ठीक है। अनुत्तीर्ण रह जानेवाले इन दस लोगों को ही भाग्य से शिकायत होगी। वे अपने हृदय पर बोझ लिए घूमेंगे। वे मानसिक पीड़ा झेलते दिखाई देंगे। वे निराशा के साथ यही शब्द कहते हुए सुने जाएँगे कि क्या करें, समय ही खराब चल रहा है।
हम दिन-रात देखते हैं कि एक ही समय में अनेक शिशुओं का जन्म भी होता है और जीवित प्राणियों की मृत्यु भी। एक ही समय में कुछ व्यक्तियों को अपार सुख के समाचार सुनने को मिलते हैं और कुछ को असीमित दुःख के क्षण भोगने पड़ते हैं। एक ही समय में कुछ व्यक्तियों को विजय का हर्ष प्राप्त होता है और कुछ को पराजय की पीड़ा झेलनी होती है। समय सबके लिए एक जैसा नहीं होता है।
समय का स्वभाव ही ऐसा है कि वह गतिशील रहता है और सबके लिए उसकी अनुकूलता एवं प्रतिकूलता समान नहीं रहती है। कुछ के लिए समय सहयोगी बन जाता है, कुछ के लिए असहयोगी।
चार प्रत्याशी चुनाव के मैदान में खडे हुए हैं। चारों ने बराबर की भाग- दौड़ की है। किसी एक ने भी चुनाव-प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी है। घर-घर जाकर जनसंपर्क किया है। जी खोलकर पैसा खर्च किया है। कार्यकर्त्ताओं का सहयोग भी किसी को किसी से कम नहीं मिला है। परिणाम घोषित हुए तो ज्ञात हुआ कि वह प्रत्याशी चुनाव जीत गया, जिसकी जीत का अनुमान सबसे कम था। वे तीन पराजित हो गए, जो अपनी विजय के बढ़-चढ़कर दावे कर रहे थे। स्वाभाविक है कि ये तीन और उनके समर्थक यही कहते दिखाई देंगे कि 'क्या करें साहब! समय ने साथ नहीं दिया।' 'समय अनुकूल नहीं था।' 'समय ने धोखा दे दिया अन्यथा जीत तो बिलकुल निश्चित थी।' अप्रत्याशित हार उनके लिए दुःख और अवसाद का कारण बनेगी। लंबे समय तक वे इस सदमे से निकल नहीं सकेंगे।
कुछ लोग नौकरी के लिए आयोजित किसी इंटरव्यू में सम्मिलित हुए हैं। चार स्थान हैं। पाँच सौ अभ्यर्थी हैं। चार का चयन कर लिया जाता है। चार सौ छियानवे रह जाते हैं। स्पष्ट है कि उनका तर्क यही होगा कि समय उनके लिए अनुकूल नहीं था। समय ने उनका साथ नहीं दिया। समय की यह प्रतिकूलता उनके लिए दुःख और मानसिक पीड़ा का कारण बनेगी। वे लंबे समय तक असफलता के इस अहसास से बाहर नहीं निकल सकेंगे।
सारांश यह है कि समय यदि आपकी इच्छा के अनुसार परिणाम सामने लाता है तो वह अच्छा है, यदि वह आपकी अपेक्षाओं के अनुसार परिणाम नहीं देता तो बुरा है। समय की अच्छाई या बुराई, अनुकूलता या प्रतिकूलता व्यक्ति की इच्छाओं के पूरी होने या न होने पर निर्भर होती है। समय उसके लिए अच्छा होता है, जिसकी अपेक्षाएँ पूरी हो गई हों। उसके लिए बुरा होता है, जिसकी वे आशाएँ पूरी नहीं होतीं, जो उसने सोच रखी थीं या जिन्हें वह लक्ष्य बनाकर जी रहा था।
अंतिम प्रश्न!
अंतिम प्रश्न यह है कि क्या ऐसे समस्त लोगों को रोते-बिसूरते रहना चाहिए, एक बोझ या पीड़ा को मन में बसाए रखना चाहिए, जिनकी इच्छाएँ पूरी नहीं हुईं या जिनके लिए समय अनुकूल नहीं रहा है?
अंतिम उत्तर!
जब कड़ाके की सर्दी पड़ रही होती है तो आप क्या करते हैं? दिसंबर का महीना अपनी यात्रा के अंतिम दिन पूरे कर रहा है। भोर से शाम पड़े तक कोहरा छाया रहता है। भयंकर शीत लहर है। कँपकँपाहट के कारण बत्तीसी बज रही है। मैं अपने मित्र आशुतोष से पूछता हूँ कि इस भयंकर सर्दी में हम लोगों को क्या करना चाहिए?
'इस जर्सी के ऊपर एक गर्म जैकेट और पहन लो।' उत्तर मिलता है।
उत्तर सुनकर मैं समझ गया हूँ कि वह मुझे सर्दी से बचाव का उपाय बता रहा है। आशुतोष इस बात को भली प्रकार जानता है कि शरीर पर गर्म कपड़ों की मात्रा बढ़ा दी जाए तो सर्दी से बचना आसान हो जाता है।
जून का महीना है। सूरज आसमान से आग बरसा रहा है। शरीर चोटी से एड़ी तक पसीने में भीगा हुआ है। बिजली बंद होने के कारण पंखे की हवा भी उपलब्ध नहीं। कपड़े पसीने की नमी के कारण शरीर से चिपक गए हैं। साँस लेनी मुश्किल हो रही है। मैं अपने मित्र अमिताभ से पूछता हूँ-इस भयंकर गर्मी में क्या किया जाना चाहिए? उत्तर मिलता है-ठंडे-ठंडे पानी में स्नान करो, शांति मिलेगी और तुम सामान्य स्थिति में आ जाओगे।
मैं जानता हूँ कि अमिताभ जब मुझे स्नान करने की सलाह दे रहा है तो वह वास्तव में मुझे गर्मी से बचाव का सबसे उत्तम उपाय बता रहा होता है। मैं अपने मित्र की सलाह मानता हूँ और सर्दी तथा गर्मी दोनों के प्रभाव से मुक्ति पा लेता हूँ। वास्तव में बचाव के ये तरीके ही मेरे कष्ट का एकमात्र उपचार हैं।
आश्चर्य है! मुझे आश्चर्य है कि जब कोई व्यक्ति अपने किसी मित्र या परिचित से समय के अनुकूल न होने की शिकायत करता है और कहता है कि समय उसका साथ नहीं दे रहा है; वह जिस काम में हाथ डालता है, उसमें घाटा उठाता है; जो लक्ष्य निर्धारित करता है, वह प्राप्त नहीं होता है। उसकी सहनशक्ति क्षीण हो गई है। वह निराश होने लगा है। टूटने लगा है। वह हौसला हारता जा रहा है। इस अंधकार से निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।
अनुभव! मेरा प्रतिदिन का अनुभव यह है कि जब रात्रि की कालिमा छा जाती है और विद्युत-आपूर्ति भी नहीं हो रही होती है तो मैं अपने कमरे में मोमबत्ती जला लेता हूँ। इससे कम-से-कम मेरा कमरा अवश्य ही प्रकाशमय हो जाता है। या कभी तेज़ आँधी आ जाती है और आँधी के साथ ताबड़तोड़ वर्षा पड़ने लगती है तो मैं उठकर अपने कमरे की सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद कर लेता हूँ। इससे मैं तेज़ हवा के झोकों और वर्षा की बौछारों से स्वयं को सुरक्षित कर लेता हूँ। मैं अंधकार से, आँधी से और वर्षा से अपने बचाव के उपाय जानता हूँ। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे द्वारा कमरे में मोमबत्ती जला लेने से रात प्रभात में बदल सकती है या कमरे की खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद कर लेने से तेज़ आँधी और मूसलाधार वर्षा रुक सकती है किंतु यह अवश्य कह सकता हूँ कि कम-से-कम व्यक्तिगत स्तर पर ऐसा करके मैंने इनसे अपना बचाव कर लिया है।
अपने भीतर अपनी संकल्प-शक्ति को पहचानें। उसे विकसित करें। विकसित कैसे करें? इसके लिए इतना जानना पर्याप्त है कि जिस तरह शारीरिक व्यायाम से आप अपनी दैहिक शक्ति बढ़ाते हैं, वैसे ही दिमाग़ी व्यायाम से अपनी मानसिक शक्ति में भी वृद्धि कर सकते हैं। दिमाग़ी व्यायाम नियमित रूप से करें। इसके लिए सबसे उत्तम विधि सकारात्मक सोच के लिए निर्धारित बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने की है। यह व्यायाम करेंगे तो आपकी संकल्प-शक्ति में वृद्धि होगी और यह संकल्प-शक्ति समय की प्रतिकूल परिस्थितियों में आपका निश्चित रूप से बचाव करेगी।
डा. गिरिराजशरण अग्रवाल

2 comments:

  1. शरण साहब,
    आपके आलेख को पढ़ा ,,,वाकई अच्छी-अच्छी बातें कही हैं आपने....संकल्प शक्ति वास्तव में लोगों के जीवन पर अनूठा प्रभाव डालता है...इस तरह की रचना का अभी ब्लॉगजगत पर प्रचलन नहीं है...लोग पढ़ते भी नहीं है...लेकिन हमें तो अपना काम करते रहना चाहिए...

    इसी लिए हमने (शमा जी और मैंने ) Ek sawal tum karo ब्लॉग शुरू किया है जिसपर आपने अपना सहयोग देना प्रारंभ किया है...धन्यवाद ...

    उस ब्लॉग को हमने यह सोच कर प्रारंभ किया कि एक मंच बनाया जाय जहाँ सामाजिक-आर्थिक-राजनितिक-नैतिक-प्राकृतिक समस्या पर सोच-विचार किया जाय और आलेख लिखे जाएँ...कोशिश रहेगी हिंदी लेखन के लोगों को इसपर आने को और अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित किया जाय...
    आशा है आप निरंतर आपने कीमती समय में से कुछ पल इस मंच को देते रहेंगे और अपने विचारशील भावो से ब्लॉगजगत को अवगत कराएँगे...

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  2. समय के दो गुण हैं- पहला यह कि वह निरंतर गतिशील रहता है, वह कभी रुकता नहीं है। दूसरा यह कि उसका प्रभाव सबके लिए एक जैसा नहीं होता है। एक के लिए उसका प्रभाव अनुकूल है तो दूसरे के लिए प्रतिकूल है।
    पूरे आलेख से तो मैं सहमत नहीं .. पर समय की बहुत अच्‍छी परिभाषा दी है आपने .. कभी एक संयोग से किसी को जीवन में आगे बढने में सुविधा होती है .. और कभी कोई दुर्योग किसी को पीछे धकेलने में कामयाब हो जाता है .. पर आखिर कितने दिनों तक ??
    मेहनत करते रहें तो कभी न कभी उनका समय भी जरूर फिरता है .. हार मानने से क्‍या हो सकता है ??
    समय की इसी विशेषता के अध्‍ययन के बाद हमलोगों ने 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष'
    जैसी एक नई विधा विकसित करने में सफलता प्राप्‍त की है !!

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